पिछले एक महीने में घाटी में भारतीय जनता पार्टी के 6 से ज्यादा कार्यकर्ताओं पर आतंकी हमला हो चुका है। इनमें से 5 की मौत हो गई, जबकि एक अब भी अस्पताल में जिंदगी और मौत के बीच मौजूद हैं। जम्मू-कश्मीर के लेफ्टिनेंट गवर्नर मनोज सिन्हा ने बुधवार को श्रीनगर के कुछ सरपंचों से मुलाकात की। उन्होंने कहा कि वो पंचायत से जुड़े राजनीतिक कार्यकर्ताओं की हत्या से दुखी हैं। ये भरोसा दिलाया कि प्रशासन पहले से ही सुरक्षा के लिए कदम उठा रहा है, इसे और बेहतर किया जाएगा।
कश्मीर घाटी में पिछले एक महीने में मारे गए भाजपा कार्यकर्ताओं में 2 सरपंच, भाजपा का एक युवा नेता और उसका भाई और पिता शामिल हैं। 8 जुलाई की शाम नॉर्थ कश्मीर के बांडीपोरा में भाजपा के युवा नेता वसीम बारी, उनके पिता और उनके भाई की गोली मार कर हत्या कर दी गयी। इस हमले के बाद साउथ कश्मीर में 3 हमले हुए जिनमें भाजपा के 2 सरपंच मारे गए और एक घायल हुए हैं। पिछले रविवार को कश्मीर के बडगाम जिले में एक और सरपंच की गोली मार कर हत्या कर दी।
इन हमलों के डर से घाटी में भाजपा से जुड़े 40 लोगों ने इस्तीफा देने और राजनीति छोड़ने का ऐलान किया है। दक्षिण कश्मीर के कुलगाम जिले में रहने वाले सरपंच मुहम्मद इकबाल कहते हैं कि वो मरना नहीं चाहते। बोले, ‘मेरी पत्नी की मौत हो चुकी है। अब अगर मुझे कुछ हो गया तो मेरे बच्चों का कौन ख्याल रखेगा?’ इकबाल कहते हैं कि मैंने राजनीति से एक पैसा भी नहीं कमाया है। मैं अपना वक्त अपने काम में लगाना चाहता हूं। इकबाल ने कुछ दिन पहले वीडियो मैसेज के जरिए इस बात की जानकारी दी थी।
दूसरी तरफ भाजपा इन इस्तीफों को मौका परस्ती बता रही है। पार्टी के प्रवक्ता अल्ताफ ठाकुर कह चुके हैं कि जो लोग इस्तीफा दे रहे हैं, वे सिर्फ अपना फायदा देख रहे हैं। ये लोग अपने फायदे के लिए दल बदलते रहते हैं, इनके लिए देशहित की कोई वैल्यू नहीं है।उधर प्रशासन पंचायत से जुड़े सदस्यों की सुरक्षा के इंतजाम का दावा तो कर रहा है, लेकिन ज्यादातर सदस्य, इससे संतुष्ट नहीं है। इन सदस्यों में ज्यादातर भाजपा के हैं। प्रशासन इन्हें अलग-अलग सुरक्षित जगहों पर ले जा रहा है, भले ही वहां जाने की मर्जी सदस्यों की नहीं हो।
1267 पंच-सरपंच, 68 बीडीसी काउंसिल हैं घाटी में। इनमें से ज्यादातर भाजपा के हैं। इन लोगों को अलग-अलग जिलों के मुताबिक सुरक्षित जगहों पर ले जाया जा रहा है। जैसे साउथ कश्मीर से पंच-सरपंचों को पहलगाम के होटल ले जाया गया है। कुछ को एमएलए होस्टल और कश्मीरी पंडितों की कॉलोनी में शिफ्ट किया है। श्रीनगर के आसपास के जिलों से कुछ सरपंच को गुलमर्ग के होटल में रखा है।
भाजपा से जुड़े सरपंच मोहम्मद अमीन कहते हैं, ‘हमें जबरदस्ती ऐसी जगह पर रखा गया है, जहां न खाने का इंतेजाम है और न सोने का। मेरी बेटी का ऑपरेशन होना था, अभी वो अस्पताल में है। मुझे किसी अधिकारी से 5 मिनट के लिए मुलाकात का कहकर यहां लाया गया था। मुझे यहां आए हुए दो दिन हो गए, आखिर हमें जबरदस्ती बंद करके सरकार क्या जताना चाहती है।’
जम्मू-कश्मीर भाजपा के महासचिव अशोक कौल ने पहलगाम के एक होटल में ठहराए गए पंचायत सदस्यों से मुलाकात की। उनका कहना है कि इन लोगों को अच्छी सुरक्षा दी जाएगी। कुछ दिन के लिए इन्हें यहां रखा गया है। आगे सुरक्षित जगह पर ले जाया जाएगा।
पंचायत के सारे लोग भाजपा से ही क्यों जुड़े हुए हैं ?
कश्मीर में पंचायत चुनाव अक्टूबर 2019 में हुए थे। उसमें यहां की पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी और नेशनल कॉन्फ्रेंस ने हिस्सा नहीं लिया था। वजह ये कि उनके मुख्य नेता अनुच्छेद 370 हटाए जाने के बाद हिरासत में थे। श्रीनगर के पत्रकार शाह अब्बास कहते हैं, ‘कश्मीर में 1267 पंच और सरपंच हैं और ज्यादातर भाजपा से जुड़े हुए हैं। हालांकि, इन चुनावों में लोग पार्टी के आधार पर नहीं, निर्दलीय ही लड़ते हैं। हालांकि, लोगों को पता होता है कि किसके तार कहां जुड़े हुए हैं। यही हाल ब्लॉक डेवलपमेंट काउंसिल का भी है, जहां ज्यादातर निर्वाचित हुए लोग भाजपा से ही जुड़े हुए हैं।’
कश्मीर घाटी में मेनस्ट्रीम पॉलिटिक्स से जुड़े लोगों की हत्या पहली घटना नहीं हैं, लेकिन अब तक भाजपा नेता इस हिंसा से बहुत कम प्रभावित हुए थे। सवाल यह है कि पहले भाजपा प्रभावित नहीं हुई थी तो अब क्यों? जम्मू-कश्मीर भाजपा के महासचिव अशोक कौल रविवार को आतंकी हमले में मारे गए सरपंच के घर गए थे। अपनी पार्टी के कुछ ब्लॉक डेवलपमेंट काउंसिल सदस्यों से मुलाकात के दौरान उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि वो आम लोगों और शासन के बीच की कड़ी बनें।
जिस कड़ी की बात कौल कर रहे हैं, वही कश्मीर में भाजपा के लोगों की हत्या का कारण भी है। इसके पहले पीडीपी और नेशनल कॉन्फ्रेंस के लोग लोगों और एडमिनिस्ट्रेशन के बीच की कड़ी हुआ करते थे, जो अब कहीं दिखाई नहीं दे रहा। 2014 से पहले जम्मू-कश्मीर की राजनीति में भाजपा की भूमिका कम रही है, जिसका अंदाजा पहले के चुनावों में मिली सीटों से लगाया जा सकता है।
1987 के चुनाव में भाजपा को 2 सीटें मिली थीं, 1996 में 8, 2002 में 1 और 2011 में 11 सीटें। भाजपा को 2014 में 25 सीटें मिलीं थीं और पीडीपी के साथ उसने मिलकर सरकार बनाई थी। उस समय भी भाजपा को कश्मीर घाटी में कोई सीट नहीं मिली थी।
अल्ताफ कहते हैं पिछले साल 5 अगस्त को अनुछेद 370 हटाए जाने के बाद चीज़ें बदल गयी हैं। कश्मीर घाटी में मुख्य धारा के नाम पर सिर्फ भाजपा ही बची है। इस समय सिर्फ कश्मीर घाटी में भाजपा के लगभग 7.5 लाख कार्यकर्ता हैं। हालांकि, ऐसा होना भाजपा को भारी भी पड़ रहा है। पहले जो हमले मुख्य धारा के लोगों पर कश्मीर में होते थे वो नेशनल कॉन्फ्रेंस, कांग्रेस, पीडीपी और बाकी अन्य पार्टियों में बंट जाते थे। अब भाजपा इकलौती पार्टी है जो जमीन पे दिख रही है, चाहे वो लोग काम कर रहे हों या नहीं। यह एक ही पार्टी है जो कश्मीर में राजनीति कर रही है।
महबूबा मुफ्ती अभी भी नज़रबंद हैं, उमर अब्दुल्ला को हाल ही में रिहा किया गया है। शाह फैसल, जो आईएएस छोड़ कर राजनीति में आए थे, अब राजनीति को अलविदा कह चुके हैं और कांग्रेस कहीं नजर नहीं आ रही है। इसके अलावा आर्टिकल 370 हटाए जाने को भारत सरकार से न जोड़कर भाजपा से जोड़ा जा रहा है, जो यहां हो रहे हमले की एक बड़ी वजह भी है।
इस तरह के हालात के बीच भी कुछ लोग हैं, जो बिना डरे पार्टी का काम कर रहे हैं और वो भी डंके की चोट पर। 5 अगस्त को भाजपा के एक सरपंच के मारे जाने के कुछ घंटे बाद, पार्टी की एक महिला कार्यकर्ता रूमेसा वानी ने अनंतनाग के लाल चौक में तिरंगा फहराया था, इसका विडियो सोशल मीडिया पर वायरल भी हुआ था।
रूमेसा कहती हैं, मैं किसी से डरती नहीं हूं, मुझे किसी चीज़ का खौफ नहीं है। यहां के लोग हमारे साथ हैं। मैंने भाजपा का काम देखकर पार्टी ज्वाइन की थी, मुझे कोई अफसोस नहीं है। रूमेसा के पति भी भाजपा के नेता हैं। रूमेसा पहली नेता नहीं हैं, जिन्होंने आर्टिकल 370 हटने की एनिवर्सरी मनाई। भाजपा के कई नेताओं ने सड़कों पर, दफ्तरों में और दूसरी जगहों पर 370 हटाए जाने की वर्षगांठ मनाई। लेकिन अब एक लकीर खींच गई है, एक तरफ भाजपा है और दूसरी तरफ कश्मीर के हालात, जहां हमेशा जान का खतरा रहता है।
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