गुजरात और राजस्थान की सीमा पर बनासकांठा जिले की दांता तालुका में अम्बाजी का मंदिर बना हुआ है। यह मंदिर देश के सबसे पुराने और पवित्र शक्ति तीर्थ स्थानों में से एक है। ये शक्ति की देवी सती को समर्पित 51 शक्तिपीठों में से एक है।
सिद्धपीठ अम्बाजी मंदिर
अम्बाजी का मंदिर गुजरात-राजस्थान सीमा पर अरावली शृंखला के आरासुर पर्वत पर स्थित है, जो देश का एक अत्यंत प्राचीन मंदिर है। यह मंदिर लगभग बारह सौ साल पुराना है। सफेद संगमरमर से बना ये मंदिर बेहद भव्य है। मंदिर का शिखर 103 फीट ऊंचा है। शिखर सोने से बना है। ये मंदिर की खूबसूरती बढ़ाता है। यहां विदेशों से भी भक्त दर्शन करने आते हैं। ये 51 शक्तिपीठों में से एक है, जहां मां सती का हृदय गिरा था ।
मान्यता: सालों से जल रही अखंड ज्योत कभी नहीं बुझी
कहने को तो यह मंदिर भी शक्ति पीठ है पर यह मंदिर अन्य मंदिरो से कुछ अलग हटकर है। इस मंदिर में मां अम्बा की पूजा श्रीयंत्र की आराधना से होती है जिसे सीधे आंखों से देखा नहीं जा सकता। यहां के पुजारी इस श्रीयंत्र का श्रृंगार इतना अद्भुत ढंग से करते हैं कि श्रद्धालुओं को लगता है कि मां अंबा जी यहां साक्षात विराजमान हैं। इसके पास ही पवित्र अखण्ड ज्योति जलती है, जिसके बारे में कहते हैं कि यह कभी नहीं बुझी।
गब्बर नामक पहाड़ की महिमा
माना जाता है कि यह मंदिर लगभग 1200 साल पुराना है। अम्बा जी के मंदिर से 3 किलोमीटर की दूरी पर गब्बर पहाड़ भी मां अम्बे के पद चिन्हों और रथ चिन्हों के लिए विख्यात है। मां के दर्शन करने वाले भक्त इस पर्वत पर पत्थर पर बने मां के पैरों के चिन्ह और मां के रथ के निशान देखने जरूर आते हैं। अम्बाजी मंदिर के बारे में कहा जाता है कि यहां पर भगवान श्रीकृष्ण का मुंडन संस्कार संपन्न हुआ था । वहीं भगवान राम भी शक्ति की उपासना के लिए यहां आ चुके हैं। नवरात्र पर्व में श्रद्धालु बड़ी संख्या में यहां माता के दर्शन के लिए आते हैं। इस समय मंदिर प्रांगण में गरबा करके शक्ति की आराधना की जाती है।
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