योगगुरु वाई.के. शर्मा
शंका-वहम सुखी तथा सफल जीवन का नाश कर सकता है। यदि आप शंकालु रहेंगे तो धीरे-धीरे आपके व्यक्तित्त्व में अज्ञात चिन्ता, भय, कायरता एवं अस्थिरता उत्पन्न होने लगेगी। आखिर में सुन्दर जीवन मात्र एक व्याकुल एवं अशांत बनकर रह जाएगा।
हमेशा यह ध्यान रखें कि आपका मन-मस्तिष्क गलत दिशा में आपका ही शत्रु बन जाएगा। जीवन में शक या वहम होने का मूल कारण होता है मन, वचन और कर्म में अंतर होना। जब व्यक्ति के मन (विचार), वचन (बोलने) और कर्म (करने) में भिन्नता होती है तो उसका जीवन एक त्रिकोण के समान हो जाता है।
यदि जीवन को एक सरल बनाना है तो अपने मन, वचन और कर्म में समानता रखें। आपका जीवन सुख शांति एवं सफलता से परिपूर्ण रहेगा। शक करने की आदत से पर्सनालिटी कमजोर होने लगती है, जिसके परिणाम स्वरुप व्यक्ति को असंतोष, अस्थिरता एवं असफलता प्राप्त होती है।
क्या अब भी आप चाहेंगे कि जीवन में बात-बात में शक या वहम के शिकार होते रहें? कभी नहीं। हमेशा हर स्थिति में दृढ़ आत्मबल एवं मजबूत बुद्धि विवेक बनाए रखें, हर संभव प्रयास रखें कि आपके सोचने, बोलने एवं कार्य करने में भिन्नता न हो। जरा आजमाकर देखिए जीवन कितना आनन्दप्रद एवं मनोरम लगेगा |
कभी भी कल्पित, आधारहीन मशवरे पर कोई भी गलतफहमी या शक अपने मन में न पाले। जीवन के प्रति अपने दृढ़ निश्चय व ध्येय को मजबूती प्रदान करते रहें, आशावान बनें, पूरी लगन, मेहनत एवं ईमानदारी से अपना कर्म करें। निश्चिंत रहें कि आपके जीवन में सुख-शांति एवं सफलता खुद ही आपकी ओर आकर्षित होकर सही समय पर आपके पास आ रही है।
महापुरुषों के मार्ग में भी अनेकों व्यवधान आए लेकिन उन सभी ने अपनी प्रबल इच्छा शक्ति से उनका निराकरण कर अपने जीवन ध्येय का अन्तत: मार्ग प्रशस्त कर लिया।
(लेखक - योगाश्रय सेवायतन प्राकृतिक चिकित्सा एवं ध्यान योग केंद्र जयपुर. राजस्थान के संस्थापक हैं।)
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