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दिल्ली के शकूरपुर इलाके की झुग्गी-झोपड़ी की संकरी गली में मैं एक कच्चे दुमंजिला मकान की अंधेरी सीढ़ियां चढ़ ही रहीं थी कि पायल की झनकार कानों में पड़ी। छन-छन करती वो साढ़े तीन साल की बच्ची मेरी तरफ दौड़ी। मुस्कराती हुई। उसकी आंखों से चमक और चंचलता टपक रही थी। 25 वर्गफीट के इस घर की आधी खाली पड़ी छत उस बच्ची की पूरी दुनिया है, जहां वो दिन भर उछल-कूद करती रहती है।
वो अपने खिलौने उठाए इधर-उधर दौड़ती है। टॉप ऊपर उठता है तो पेट पर बना ऑपरेशन का बड़ा निशान दिखता है। वो लैटरीन कर सके इसके लिए डॉक्टरों को उसका दो बार ऑपरेशन करके नई जगह बनानी पड़ी थी।
28 जनवरी 2018 को इसी घर में उसके सगे ताऊ के बेटे ने उसके साथ रेप किया था और उसे खून से लथपथ छोड़ दिया था, मरने के लिए। लेकिन वो जिंदा रही। वो उस वक्त सिर्फ आठ महीने की थी। आठ महीने की बच्ची ना खड़ी हो पाती है, ना उसके हाथ-पांव ठीक से सीधे हो पाते हैं। उसकी आंखें अपने इर्द-गिर्द लोगों और चीजों को पहचानना सीख रही होती हैं। उसकी जुबान बोलना सीख रही होती है। उसे पता भी नहीं होता कि वो मर्द है या औरत।
लेकिन आठ महीने की उम्र में इस बच्ची को बेहद वीभत्स तरीके से बता दिया गया था कि वो एक औरत है। सिर्फ एक औरत। इससे पहले कि वो इस दुनिया में अपना वजूद बना पाती, अपनी पहचान बना पाती, उस पर रेप पीड़िता की पहचान थोप दी गई।
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उस दिन को याद करके उसकी मां आज भी सिहर उठती हैं। वो कहती हैं, 'साढ़े बारह बजे होंगे, मैं काम से लौटी थी, बड़ी बेटी रो रही थी और छोटी अपने बिस्तर में खून से लथपथ पड़ी थी।' कोई बहुत पक्के दिल का ही होगा, जो इस बच्ची की मेडिकल रिपोर्ट को पढ़ ले और अपने आंसू थाम ले। उसके नाजुक अंग अपना वजूद खो चुके थे। डॉक्टरों को उसकी जान बचाने के लिए तीन घंटे लंबा ऑपरेशन करना पड़ा था।
इस बच्ची की मां और पिता दोनों काम पर जाते थे और बमुश्किल घर का खर्च चलाने और बच्ची के लिए दूध खरीदने लायक ही कमा पाते थे। उस दिन जब मां काम पर गईं थी तो नीचे के कमरे में रह रहे अपने जेठ के परिवार से बच्चियों का ध्यान रखने के लिए बोल गईं थीं। तब उन्होंने सोचा भी नहीं होगा कि अपने ही घर में उनकी बेटियों को कुछ हो सकता है।
उनके जेठ के 28 साल के उस बेटे ने बच्ची से बलात्कार किया, जिसका अपना एक आठ महीने का बेटा था। पुलिस ने उसी दिन आरोपी को गिरफ्तार कर लिया था और वो अब भी जेल में हैं। घटना के बाद दिल्ली महिला आयोग की अध्यक्ष स्वाति मालीवाल ने महिला सुरक्षा के मुद्दे पर दस दिन तक धरना दिया था। दुनियाभर के मीडिया में बच्ची से बलात्कार की ये खबर छाई रही।
बच्ची की मां कहती हैं, 'स्वाति मालीवाल ने हमारी बहुत मदद की और हमें हौसला दिया। अगर वो ना होती तो शायद ये मामला किसी को पता भी नहीं चलता। बच्ची की जान बचाने में भी उन्होंने बहुत मदद की।' लंबे समय तक अस्पताल में रहने के बाद जब ये बच्ची घर लौटी तो उसके लिए जिंदगी आसान नहीं थी। उसे उसी घर में रहना था, जिसमें उसके साथ दरिंदगी करने वाले का परिवार भी रहता है।
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घर की बात घर में रहने दो, बच्ची मर भी गई तो आगे और बच्चे हो जाएंगे
उसके पिता कहते हैं, 'यार-रिश्तेदार हम पर मामला वापस लेने का दबाव बनाते हैं। भाई का परिवार अपने बेटे को बचाने का दबाव बनाता है। लेकिन, हम चाहते हैं कि ऐसे दरिंदों को फांसी से कम कुछ ना हो।'
मजदूरी करके अपने बच्चों को पालने वाले इस पिता ने अपने छोटे से कमरे में सीसीटीवी लगवा लिया है। लेकिन, क्या वो सुरक्षित महसूस करते हैं? इसका सीधा सा जवाब है ना। वो कहते हैं, 'हमें धमकियां मिलती हैं, दिन रात डर सताता रहता है कि कहीं कुछ हो ना जाए। लेकिन, हम और कहीं जा भी नहीं सकते। हमारे पास रहने के लिए बस यही एक जगह है।'
जब ये बच्ची अस्पताल में जिंदगी और मौत की जंग लड़ रही थी, तब आरोपी के परिजन उसके पिता पर मुकदमा वापस लेने का दबाव डाल रहे थे। वो कहते हैं, 'वो मुझसे कह रहे थे कि मामला वापस ले ले, घर की बात घर में रहने दे। अगर बच्ची मर भी गई तो आगे और बच्चे हो जाएंगे, घर के लड़के का तो जीवन बच जाएगा।'
यानी उस बच्ची की जिंदगी का कोई मोल ही नहीं था। वो बस एक लड़की थी, जिसके जीने-मरने से किसी को कोई फर्क नहीं पड़ना था, बस परिवार के बेटे का जीवन बच जाए, भले ही वो दरिंदा ही क्यों ना हो।
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पक्के सबूत, लेकिन इंसाफ में देर
परिवार को भरोसा दिया गया था कि इस मामले में जल्द से जल्द न्याय होगा और छह महीने में सुनवाई पूरी होकर सजा दे दी जाएगी। इस मामले में पुलिस ने मजबूत सबूत भी जुटाए थे। डीएनए के नमूने भी आरोपी के नमूनों से मैच किए थे। बावजूद इसके ढाई साल से अधिक बीत जाने के बाद भी अभी तक सजा नहीं हो सकी है। मामला अदालत में चल रहा है।
दिल्ली महिला आयोग ने इस मामले में परिवार की हर स्तर पर मदद की और लगातार परिवार से संपर्क बनाए रखा। मां कहती हैं, 'हम पर कई तरह का दबाव था। समाज और आयोग ने हमारा साथ दिया। लेकिन, आरोपी के परिजन अभी भी उसके साथ ही हैं। उन्हें उसका जुर्म अब भी नहीं दिखता।'
इस घटना के तुरंत बाद जब मैं इस परिवार से मिलने गई थी, तब आरोपी की पत्नी अपने पति की रिहाई की कोशिशों में लगी थी। उसका मानना था कि उसके पति को गलत फंसाया गया है। आज भी उसकी राय नहीं बदली है।
वो बच्ची अब बड़ी हो रही है। अपने पेट पर बने निशान को वो देखती तो है, लेकिन इसकी वजह उसे मालूम नहीं है। उसके साथ क्या हुआ, उसे ये ना तब मालूम था और ना अब मालूम है। आगे चलकर वो कई सवाल पूछेगी, जिनका जवाब देना शायद उसकी मां के लिए आसान नहीं होगा।
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